मानव सभ्यता का इतिहास युद्धों का इतिहास है।अनेक युद्ध लड़े गए और सत्ता पर लोग काबीज होते गए समय बदला युद्ध के तरीके बदले परंतु युद्ध का कारण नहीं बदला, वह आज भी सत्ता और प्रभाव का कारक बना हुआ है। वर्तमान में जब इतिहास के इन युद्धों के दूरगामी परिणाम का अध्ययन करते हैं तो शिवाय विभीषिका के कुछ भी ठोस परिणाम नजर नहीं आता, इन युद्धों से कई देश बने और नष्ट हुए लेकिन मानवता पर हमेशा ऐसे युद्ध भारी ही पड़े हैं। भारत में महाभारत युद्ध की कथा जन-जन में धर्म युद्ध के रूप में विख्यात है। स्वयं कृष्ण इस युद्ध के साक्षी बने, विषाद ग्रस्त अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार किया तथा विजय हेतु पूरी रणनीति बनाई इस युद्ध का प्रचार धर्म युद्ध के भांति की जाती है, कहा जाता है कि कृष्ण ने इस युद्ध की भूमिका रची ताकि अधर्म को पराजित कर धर्म की स्थापना की जा सके। युद्ध के घटनाक्रम तो सबको पता है कि किस तरह इस युद्ध में महावीरों को कायरों की भांति अधर्म और अनीति से हताहत किया गया चाहे वह वीर अभिमन्यु हो या वीर द्रोणाचार्य दोनों ही पक्षों ने मर्यादा को तार-तार किया। युद्ध में केवल विजय का लक्ष्य लेकर साम-दाम-दंड-भेद की नीति को अपनाया और कृष्ण ने भी इसे सही ठहराया, अंतिम युद्ध भीम और दुर्योधन के बीच हुआ यह पूर्णता विधि के विपरीत था अंततः पांडव विजयी हुए और जैसा कि यह युद्ध धर्म स्थापना के लिए था अतः इस युद्ध की समाप्ति के बाद धर्म राज्य की स्थापना होना चाहिए था मगर क्या आपने महाभारत के युद्ध के बाद हस्तिनापुर राज्य की स्थिति को संबंध में कुछ भी पढ़ा है? आपको कुछ बताया जाता है? यदि नहीं तो क्या आपको यह जानने की इच्छा भी नहीं हुई, यदि नहीं! तो मान कर चलिए कि हम सोच की गुलामी का शिकार हो गए हैं।
चलिए एक नजर उस हालात पर डालते हैं जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया और धर्मराज युधिष्ठिर राजा बने उन्हें रह रह कर अपनी विरुद्(धर्मराज) और कर्म की परस्पर विरोधी चरित्र काटती रही, अर्जुन असामयिक वृद्ध हो गया, भीम अहंकार में डूब गया, नकुल और सहदेव सुख भोगी हो गए , गांधारी धृतराष्ट्र और कुंती वन प्रवास के समय दवाग्नि में जलकर खाक हो गए, गांधारी का एकमात्र पुत्र युयुत्सु जिसने महाभारत के युद्ध में धर्म का साथ दिया उसे माता-पिता से घृणा मिली, बार-बार भीम ने उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाया और अंततः उसने आत्महत्या कर ली। जो इस पूरे युद्ध के कर्ताधर्ता थे श्री कृष्ण, गांधारी से शापित होकर जरा के तीरों से परलोक सिधार गए, कृपाचार्य ने राज्य का त्याग कर दिया, हस्तिनापुर के लोगों में पागलपन, संबंधियों में झगड़ा, मारकाट और फसाद बढ़ गए, चारों और अशांति फैल गया और अंततः कलयुग का आगमन हो गया, तो धर्म की स्थापना कहां हुई? कौन से धर्म का जय हुआ ? यदि यह धर्म युद्ध था तो द्वापर के बाद सतयुग का आगमन होना चाहिए था, कलयुग का नहीं।
उपरोक्त लक्षण भला किसी धर्म युक्त राज्य की दशा हो सकती थी, नहीं! बिल्कुल नहीं! तो क्या महाभारत का युद्ध धर्म युद्ध नहीं था, मैं ऐसा नहीं मानता मेरे विचार से यह युद्ध धर्म युद्ध तो था पर इस युद्ध में धर्म गौण हो गया और सत्ता हावी हो गया अतः इस युद्ध से धर्म की स्थापना नही हुई, केवल सत्ता का परिवर्तन हुआ कारण साफ है अधर्म से धर्म की रक्षा नहीं हो सकती यदि साध्य पवित्र है तो उसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए साधन की पवित्रता भी आवश्यक है। धर्म के लिए अधर्म की नीति कभी भी सहयोगी सिद्ध नहीं हो सकती अतः साम दाम दंड भेद की नीति पूर्णतः कायरता है इससे किसी भी पवित्र उद्देश्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती है। आज भी समय-समय पर विभिन्न देश या राजनेता ऐसे ही सत्ता पर आरूढ़ होने के लिए धर्म का सहारा लेते हैं, धर्म पर कभी खतरा नहीं होता है, खतरा सत्ता पर होता है। अपनी प्रभाव बनाये रखने के लिए इसे धर्म पर खतरा बताते हैं और अपनी कुत्सित महत्वाकांक्षाओं को पूरा करते हैं।
प्रेरणास्त्रोत:-
अंधायुग काव्यसंग्रह
(धर्मवीर भारती)
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