INDIA
सुमित्रा की डायरी
- Get link
- X
- Other Apps
उसके जाने के बाद जिंदगी सूखे कुँए के जगती सा हो गया था, नियति की सीढ़ी लगाए सूरज रोज चढ़ता और उतर जाता मेरी बेजार निगाहें उसकी रोज पीछा करतीं जिस मुहाने से इंतजार शुरू होता उसी मुहाने पर आकर खत्म हो जातीं, यूं ही कुछ दिन चलता रहा एक रोज अचानक टेलीफोन बज उठा मैं लपका और घंटी बंद हो गई मैं वहीं कुर्सी लगाकर बैठ गया और अखबार उलटने पलटने लगा कुछ समय बाद फिर घंटी बजी मैंने रिसीव किया सामने से एक मृदुल आवाज आयी जी, चंद्रभान जी से बात हो पायेगी, मैंने कहा कहिए क्या बात है मैं ही चंद्रभान हूं।आवाज मुझे जानी पहचानी सी लग रही थी पर वक्त का तकाजा कुछ स्पष्टता की कमी थी सामने से आवाज आई मैं निरूनिमा! निरूरिमा? कौन निरूनिमा? उसने कहा निरूनिमा, सुमित्रा की बहन, सुमित्रा का नाम सुनते ही पूरे बदन में बिजली दौड़ गयी मुझे अपने बचपन के दोस्तों में सिर्फ यह एक नाम ही याद रह गया था और इसी नाम के सहारे मैंने अपनी सारी जिंदगी गुजारी थी वह हमेशा मेरे मन में उमड़ती घुमड़ती रहती थी। हमने साथ-साथ स्कूल से ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की थी फिर मुझे रिसर्च के लिए विदेश जाना पड़ा, 3 साल बाद जब वतन लौटे तब तक वह मां बन चुकी थी। मुझपर भी शादी का पारिवारिक दबाव आने लगा था पर मैं सुमित्रा के अलावा किसी और के बारे में सोच नहीं पाया फिर मैंने सुमित्रा के नाम पर ही एक अनाथालय खोल ली यही मेरा सारा जमा पूंजी था। दिन काम में निकल जाता पर एक भी रात ऐसी ना थी जब मैंने उसकी भोली मुस्कान को याद ना किया हो मैंने खुद को संभाला और पूछा कैसी है सुमित्रा, उसने कहा जी उनकी मृत्यु हुए महीने हो गए आज उनकी कमरे में एक वसीयत मिली है जिसमें उन्होंने अपनी डायरी आपको सौपने की इच्छा जताई है इसलिए आप अपना पता बता दीजिए मैं भिजवा दूंगी, मैंने अपना एड्रेस दिया कुल हफ्ते भर बाद डायरी मिल गयी। सुमित्रा ने अपने जीवन की एक-एक पहलू उस डायरी में लिख रखा था मैं उसे पढ़ने लगा,आंखों में अलग ही दुनिया तैर गयी, मैं डूब गया अब तो लगता है बस इसे पढ़ता रहूं और स्मृति के इस सागर में ही तैरता रहूं सुमित्रा इस तरह मेरी जिंदगी में आएगी यह मैंने सोचा न था। इस प्रकार सुमित्रा की डायरी मेरे बचे हुए जीवन की पैडगरी बन गई।
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment