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रज़ा

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  तू रख ले मुझे जैसे तेरी रज़ा हो तेरी हर रज़ा में भी मेरी मजा हो  तुझसे अलग जी न चलता जहां का  हँस के भी सह लेंगे कोई सजा हो।। तुझसे है सूरज ये चांदनी तुझसे तुझसे जहां है ये रागिनी तुझसे तुझसे महकती फिज़ा इस जहां की सारे जहां की तुम्ही एक वजह हो हँस के भी सह लेंगे कोई सजा हो  तू रख ले मुझे जैसे तेरी रज़ा हो।। मेरे मौला मैं तो हूं आशिक तेरा ही गले से लगा ले या दूरी बना ले  मैं होके फ़ना हो जाऊं जहां की रहम के बिना तेरे जीना कज़ा हो हँस के भी सह लेंगे कोई सजा हो तू रख ले मुझे जैसे तेरी रज़ा हो।।                        🎉DC✨️✨️✨️                                    🍓🍍🍍👍👍

प्रकृति

nature
झूमती हुई तितलियाँ, गाते हुए भौंरे और पत्ते डाल-डाल है
ये प्रकृति का काया कल्प, कल्पना विशाल है,

झील, झरना,सागर बहती , पर्वत घाटी भूगोल की,
रात-दिन और चांद-सितारा यह खेल है खगोल की,
शांतक्लांत सुंदर वरण,पक्षियों की बोल है, 
आदि अंत जीव की , प्रकृति की मोल है , 
यहां जीव-जीव जुड़ रहे ,जीवन की जाल है, 
यह प्रकृति का कायाकल्प कल्पना विशाल है।
nature
सोना ,चांदी ,हीरे ,मोती गर्भ में खदान है ,
मिल गई अनमोल ये इंसान को वरदान है,
रंग-रूप , रोग , दुःख का प्रकृति निदान है,
परिपूर्ण है प्रकृति यह विधि का विधान है ,
कलकल बहती जल, यह प्रकृति की ताल है,
यह प्रकृति का कायाकल्प कल्पना विशाल है।

आसमान में पंछियाँ,जंगल में जीव विहार है,
फूलों की हर कलियों में ,आई नित बहार है ,
आसमान को पर्वत छूती,खुशियों का त्यौहार है,
जीवन के हर रंग-रूप में , प्रकृति ही सार है ,
नित्य-निरंतर चंचलता,यह प्रकृति की हाल है,
यह प्रकृति का कायाकल्प कल्पना विशाल है।
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नित्य दोहन कर रहा, इंसान का एक वर्ग है,
घट रही उपस्थिति, यह प्रकृति को मर्ग है ,
रहस्य है यह प्रकृति , रहस्य भूगर्भ है , 
प्रेम की आंखें कहे धरा है या स्वर्ग है ,
ऊंची-ऊंची वृक्ष लताएँ,प्रकृति के बाल हैं,
यह प्रकृति का कायाकल्प कल्पना विशाल है।

कोमल है वनस्पति, यह प्रकृति की शान है,
आधार है हर जीव की, जीव की जान है ,
प्रकृति के खेल में , एक बना इंसान है ,
खोजता कहां है तू,प्रकृति ही भगवान है, 
प्रकृति है समदृष्टा,सम आकाश और पताल है,
यह प्रकृति का कायाकल्प कल्पना विशाल है।।

                                         ✍:- धीवेन्द्र चंद्रा🌿🌿8

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