पंडित सुंदरलाल शर्मा ने कहा था "जो भूमि उत्तर में विंध्यश्रेणी तथा नर्मदा से, दक्षिण में इंद्रावती-ब्रम्हाणी तक विस्तृत है तथा जिसके पश्चिम में वेनगंगा बहती है ,जहां गढ़ नामावाची ग्राम संज्ञा है जहां सिंगबाजा का प्रचार है, जहां स्त्रियों का परिधान प्रायः एक वस्त्र है तथा जहां धान की खेती होती है वहीं छत्तीसगढ़ है।" छत्तीसगढ़ की ऐसी मनोरम चित्रण इस प्रांत के सामाजिक, आर्थिक एवं धनधान्य से समृद्ध राज्य को आलोकित करती है परंतु यह राज्य के गठन के पूर्व ही कई समस्याओं से ग्रस्त हो चुकी थी इनमें से एक है 'नक्सलवाद'। 1960 के दशक में बंगाल से प्रारंभ होकर 11 राज्यों तक फैल गई ।
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नक्सलवाद'
साम्यवादी क्रांतिकारियों के उस आंदोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय साम्यवादी आंदोलन के उदय से प्रारंभ हुआ। यह बंगाल में दार्जिलिंग के समीप एक छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से प्रारंभ हुआ अतः इसे नक्सलवाद कहा जाता है । इस आंदोलन का नेतृत्व साम्यवादी नेता कानू सान्याल एवं चारू मजूमदार ने किया 1967 में उच्च वर्ग की बढ़ती शोषण व अत्याचार से कृषक एवं मजदूर वर्ग की रक्षा तथा भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष का जन्म हुआ , प्रारंभ में यह आंदोलन राजनीतिक उपेक्षा से पीड़ित शोषित वर्ग के अधिकारों की रक्षा गरीबी , बेगारी , शोषण से आजादी तथा जल ,जंगल ,जमीन पर सनातनी अधिकार हेतु प्रारंभ किया गया था । आंदोलन समय के साथ बदलता गया 1971 में आंतरिक गतिरोध में कानूसान्याल की मृत्यु हो गई और नक्सलवाद अपने राह से भटक गया 2010 में आंदोलन के भटकाव से आहत चारू मजूमदार ने आत्महत्या कर ली तथा नक्सलवाद उग्र होता गया और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संकट बन गया 2007 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में 55 जवान शहीद, हुए 25 मई 2013 को भयावह नक्सली हमले में 31 राजनीतिक पदाधिकारियों की हत्या कर दी गई, मार्च 2020 में
कोरोना संकट के समय 17 जवान सुकमा में शहीद हो गए। केंद्रीय गृह मंत्रालय के रिपोर्ट के आधार पर आज भारत में 30 जिले अत्यंत संवेदनशील हैं जिसमें से छत्तीसगढ़ के 8 जिले शामिल हैं इन्हीं 30 जिलों में 30% नक्सली घटनाएं होती हैं तथा कुल मौतों में 94% इन्हीं जिलों से संबंधित हैं ।
'नक्सलवाद' को लेकर दो प्रकार के विचार प्रचलित हैं कुछ लोग इन्हें आतंकवादी मानते हुए उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा में खतरा बता रहे हैं तो कुछ का मानना है कि यह राजनीतिक उपेक्षा के परिणाम स्वरूप उपजे असंतोष का परिणाम है। हाल के दिनों में शहरी नक्सलवाद (अर्बन नक्सल)शब्द भी चर्चा में रहा है ये वास्तव में वे लोग हैं जो शहरों में रहते हैं तथा नक्सलियों से सहानुभूति रखते हैं इन पर नक्सल अभियान हेतु युवा भर्ती के आरोप भी लगते रहे हैं हालांकि सरकार द्वारा इस प्रकार के शब्दों का खंडन किया गया है। वास्तव में नक्सलवाद का जन्म ही असमानता शोषण गरीबी के विरुद्ध ही प्रारंभ हुआ था। आक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार आज भारत के कुल संसाधनों के 73% मात्र 1% लोगों के पास केंद्रित है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल रिपोर्ट के आधार पर भारत में लगातार भ्रष्टाचार के मामलों में वृद्धि हुई है इससे भारत का आम नागरिक का सत्ता के प्रति विश्वास कमजोर होता है , असंतोष का विस्फोट सशस्त्र संघर्ष का रूप लेता है। सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण व्यक्ति के सनातनी अधिकारों को सीमित करता है। उग्रवादी ऐसी स्थिति का लाभ लेकर लोगों को संगठित करते हैं और संगठनों का विस्तार करते हैं परंतु आज इन संगठनों का कमान स्वार्थी लीडरों के हाथ में हैं जो गरीबों को गुमराह कर एक समानांतर सरकार चलाना चाहते हैं ।हाल की घटनाओं से उनके आतंकी सांठगांठ का भी खुलासा हुआ है अतः एक वर्ग इसे आतंकवादी मान रहे हैं परंतु यह उचित नहीं इन्हें गुमराह कहा जाना ही बेहतर है क्योंकि हाल के दिनों में सरकार के पुनर्वास संबंधी योजनाओं से प्रभावित भारी संख्या में नक्सलियों ने हिंसात्मक आंदोलन को छोड़कर सामान्य जीवन जीने के लिए मुख्य धारा में शामिल हुए हैं।
नक्सलवाद के बढ़ती चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए शासन स्तर पर बहुआयामी रणनीति तैयार किया गया है नक्सली आंदोलन को हतोत्साहित करने हेतु प्रत्यक्ष एवं परोक्ष योजनाएं संचालित की जा रही है केंद्रीय पुलिस बल राज्य पुलिस व स्थानीय लोगों के सहयोग से लगातार सर्च अभियान चलाया जा रहे हैं 1971 में स्टेपलचेज अभियान चलाया गया जिनमें 20000 नक्सली मारे गए थे,2007 में ग्रीन हंट तथा 2017 में ऑपरेशन प्रहार द्वारा नक्सली मंसूबों को नाकाम किया गया है साथ ही सैन्य दबाव बढ़ने से भारी संख्या में गुमराह लोग वापसी कर रहे हैं।स्वयं नक्सलियों ने माना है कि पिछले दो वर्षों में 237 नक्सली लीडर मारे गए हैं इसके अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा शिक्षा ,स्वास्थ्य, कौशल विकास सड़क निर्माण ,उद्योग, सेवा आदि की पहुंच सुनिश्चित कर लोगों को बेहतर रोजगार एवं जीवन स्तर हेतु प्रेरित किया जा रहा है। सरकार द्वारा इन लोगों को विशेष सैन्य प्रशिक्षण देकर बस्तर बटालियन का गठन किया गया है जो यहां के प्राकृतिक बनावट के आधार पर अधिक प्रभावी तरीके से कार्य कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा रोशनी कार्यक्रम 2013 से संचालित कर युवाओं को रोजगारोन्मुख बनाने की प्रयास किया जा रहा है । 2017 में आठ सूत्रीय 'समाधान योजना' प्रारंभ किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकारी प्रयासों से नक्सलवादी गतिविधियों में लगातार कमी हुई है।2015 में जहां 112 जिले प्रभावित थी वहीं 2017 में यह घटकर 90 तक सीमित हो गई है नक्सली गतिविधियों में भी 30% की कमी देखी गई है इस प्रकार सरकारी फैसलों का असर दिखाई पड़ रहा है ।
सरकारी प्रयास को और अधिक गति एवं प्रभावी बनाने के लिए रचनात्मक कार्यों का सहयोग लिया जाना चाहिए इन क्षेत्रों में बड़े राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए तथा आने वाले विदेशी मेहमानों का दौरा भी इन क्षेत्रों में कराया जाना चाहिए जिससे रक्षात्मक गतिविधियों के दबाव में नक्सलवादी गतिविधियों में कमी आएगी, सरकार के प्रति विश्वास में वृद्धि होगी, रोजगार के साधन बढ़ेंगे ,लोग मुख्य समाज से जुड़ने का प्रयास स्वयं करेंगे। पर्यटन के क्षेत्रों का विकास कर राज्य के लोगों को इन क्षेत्रों में सुरक्षित भ्रमण सुनिश्चित कराना चाहिए जिससे इन क्षेत्रों को लेकर नकारात्मक दृष्टिकोण में भी बदलाव आएगा तथा एक सकारात्मक चित्रण हो सकेगा। संविधान के पांचवी अनुसूची भलीभांति लागू किया जाय तथा गांधी जी के अंतिम ब्यक्ति के विकास संबंधी अवधारणा को आधार बनाकर जवाहर लाल नेहरू के पंचशील सिद्धांत को अपनाया जाना चाहिए जिसमें उन्होंने इन दुर्गम क्षेत्रों के विकास का दायित्व स्थानीय लोगों को सशक्त बनाकर प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वे अपने कला संस्कृति को जीवित रखते हुए समग्र विकास के राह पर चल सके तथा देश के तरक्की एवं संसाधनों पर अपना अधिकार दायित्व एवं सुनिश्चित कर सकें।
आज के आधुनिक दौर में अधिकारों की रक्षा हेतु हिंसात्मक रास्ता उचित नहीं ठहराया जा सकता खासकर तब जब हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं तथा जहां गांधी और बुद्ध जैसे अहिंसात्मक चरित्र का उदय हुआ हो हिंसात्मक गतिविधियां जनता की सहानुभूति प्राप्त करने में भी असफल होती हैं तथा यह रास्ता दीर्घकालिक परिणाम नहीं दे पाते ऐसे में शांतिपूर्ण एवं संवैधानिक तरीकों से ही हमें अपनी आवाज उठानी चाहिए तथा जनता के सहयोग से अधिकारों की रक्षा हेतु सरकारों का ध्यानाकर्षण करना चाहिए।इस प्रकार एक सभ्य समाज में नक्सलवाद या किसी भी अन्य हिंसात्मक गतिविधियों के लिए कोई स्थान नही होना चाहिये।
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ReplyDeleteअति सुंदर लेख चन्द्रा जी आपके इस लेख में वो सभी सुझाव हैं जिसे अपना के नक्सलवाद को मुक्त किया जा सकता हैं
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