मध्य भारत में स्थित प्राकृतिक सौंदर्य से सुसज्जित
छत्तीसगढ़ प्रांत अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं आर्थिक वैभव से समृद्ध राष्ट्र में अलग पहचान रखती है। पंडित सुंदरलाल शर्मा के शब्दों में "जो भूभाग उत्तर में
विध्यांचल व नर्मदा से दक्षिण की ओर इंद्रावती व ब्रह्माणी तक है। जिसके पश्चिम में वेन गंगा बहती है ,और जहां पर गढ़ नामाबाची ग्राम संज्ञा है जहां पर सिंगबाजा का प्रचार है,जहां स्त्रियों का पहनावा प्रायः एक वस्त्र है तथा जहां धान की खेती होती है, वही भूमि छत्तीसगढ़ है।" छत्तीसगढ़ के संदर्भ में शब्दों का यह मणिकांचन प्रयोग इस धरा के सौंदर्य बोध का परिचायक है। छत्तीसगढ़ में पर्यटन की विविध संभावनाएं है ,यहां ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक पर्यटन स्थलों का भरमार है। इस भूमि पर राम, गांधी और बुद्ध के पदचिह्न हैं इस पूण्य भूमि की सुंदरता देखते ही बनती है।
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chhattisgarh ka paryatan sthal |
रायगढ़ में बोतल्दा, सिंहनपुर की गुफा पाषाण कालीन स्थल हैं। यहां अनेक शैल चित्र बिखरे हुए हैं। इसके अतिरिक्त रामायण, महाभारत ,जैन-बौद्ध, मौर्य एवं गुप्त काल से संबंधित अनेक स्थलों की पहचान की गई है। सरगुजा की जोगीमारा एवं सीता बेंगरा की गुफा को विश्व का प्राचीन नाट्यशाला होने का गौरव प्राप्त है ।साथ ही क्षेत्रीय शासकों की अद्वितीय कलात्मक संरचनाओं का संरक्षण किया गया है जैसे राजिम का राजीव लोचन मंदिर ,कवर्धा का भोरमदेव मंदिर, रतनपुर का महामाया मंदिर, पाली का शिव मंदिर ,खरौद का कुलेश्वर महादेव मंदिर, दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर आदि छत्तीसगढ़ के समृद्ध शिल्प कला का अद्वितीय नमूना है।
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अनेक धार्मिक पर्यटन स्थल जैसे मदकू द्वीप ,चंद्रपुर ,रतनपुर ,सिरपुर, डूंगरगढ़, राजीम, खरौद, मड़वा, शिवरीनारायण इत्यादि अनेक स्थल धर्म दर्शन के साथ-साथ अंचल के प्राचीन इतिहास के गौरव गाथा का प्रतीक है।
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सांस्कृतिक दृष्टि से प्रदेश का अपना अलग ही महत्व है। छत्तीसगढ़ जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है जो वनों में वास करती हैं यहां अनेक मेला ,त्यौहार, नृत्य ,गान, उत्सव आदि विश्व प्रसिद्ध लोक आयोजन होते हैं।बस्तर की दशहरा और नारायणपुर की मड़ाई का अंतरराष्ट्रीय पहचान है। जनजातियों में कर्मा ,सुआ, ददरिया ,गौर ,आदि नृत्य किया जाता है जो आकर्षण का केंद्र होता है।जगह-जगह मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें भारी संख्या में लोग सम्मिलित होते हैं जो जनजातीय पर्यटन की विपुल संभावना को व्यक्त करती है।
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छत्तीसगढ़ की भौगोलिक बनावट प्रकृति का अनुपम कृति है, यहां पर्वत पठार मैदान व पाट क्षेत्रों का दुर्लभ समावेशन है जहां लगभग 44% भूभाग वनाच्छादित है जो 3 राष्ट्रीय उद्यान और 11 अभ्यारणों में विभाजित है जो विविध वन्यजीवों का निवास स्थल है। बस्तर संभाग विभिन्न प्राकृतिक कलाकृतियों की दृष्टि से कौतुहल का विषय बना हुआ है यहां कुटुमसर गुफा में पाई जाने वाली अंधी मछली व चूना पत्थर से निर्मित स्टेग्लोटाइट स्ट्रक्चर दुर्लभ है।
तीरथगढ़ एवं
चित्रकोट जलप्रपात अपने करतल ध्वनि से बस्तर के अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य का बखान करती है।
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मध्य छत्तीसगढ़ सीमांत उच्च भूमि से घिरा हुआ मैदानी भाग है जहां धान की खेती होती है अतः इसे धान का कटोरा कहते हैं।उत्तर छत्तीसगढ़ में मैनपाट ,सरगुजा ,जशपुर, में कई विचित्र प्राकृतिक संरचनाएं मौजूद है जैसे दलदली भूमि, ठिनठिनी पत्थर, उल्टी जल की धारा आदि।मैनपाट प्रदेश का सबसे ठंडा स्थल है अतः इसे छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहते हैं यहां स्ट्रौबरी,चाय अनाशपत्ती की खेती होती है साथ ही यहां तिब्बती शरणार्थियों को बसाया गया है जो ऊन का कार्य करते हैं इस प्रकार अंचल प्राकृतिक रूप से समृद्ध एवं आकर्षक संरचनाओं का समुच्चय है।
ऐसी अद्भुत एवं दुर्लभ सौंदर्य से परिपूर्ण स्थल दूरदर्शिता एवं सुनियोजित नीति के अभाव में देश के मध्य में स्थित होने के बावजूद उपेक्षा का शिकार हुआ है।पूर्व में किए गए प्रयास आशानुरूप नहीं रहा है। वर्तमान में पर्यटन की महत्ता से शासन प्रशासन में जागरूकता आई है। सन् 2002 में 'छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल' की स्थापना की गई जिसकी सहायता से राज्य एवं राज्य के बाहर 18 पर्यटन सूचना केंद्र के माध्यम से राज्य के पर्यटन स्थलों का प्रचार प्रसार किया जा रहा है। 'जी एशिया पेसिफिक' के माध्यम से विभिन्न विदेशी भाषाओं में राज्य के पर्यटन क्षेत्रों का विज्ञापन किया जा रहा है साथ ही कई पर्यटन योजना संचालित कर राज्य में युवाओं को रोजगार से भी जोड़ा जा रहा है। 2006-07 में 'छत्तीसगढ़ पर्यटन नीति' लागू किया गया है परंतु ये व्यवस्थाएं पर्याप्त नहीं है।
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यह सत्य है कि आज छत्तीसगढ़ वायु एवं स्थल मार्ग से जुड़ चुका है परंतु आज भी आंतरिक परिवहन को सुगम बनाने की आवश्यकता है ताकि पहुंच मार्ग सरल हो सके जो पर्यटन को गति प्रदान करेगा राज्य में आने वाले बाहरी पर्यटकों की आवश्यकता अनुरूप भोजन एवं ठहरने की व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए होटलों की स्थापना किया जाना चाहिए।नवाचार के माध्यम से पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जैसे ट्राईबल विलेज, राम वन गमन सर्किट,ट्राईबल सर्किट का विकास किया जाए।इस क्षेत्र में कई सरकारी प्रयास भी हुए हैं जैसे धमतरी में कृत्रिम बीच का निर्माण,कवर्धा में ट्राइबल ओपन थिएटर की स्थापना तथा रायपुर में कृत्रिम जंगल सफारी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है इसके अतिरिक्त सूचना तंत्रों के प्रयोग से राज्य की समृद्धि पर्यटन स्थलों की प्रचार प्रसार को व्यापकता प्रदान की जा सकती है। इस हेतु चाहिए कि राज्य सरकार क्षेत्रीय फिल्मों के निर्माण में सब्सिडी दें , ब्रांड एंबेसडर नियुक्त करें, लोक आयोजनों का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार प्रसार एवं प्रदर्शनी का आयोजन किया जाए,सोशल मीडिया के माध्यम से भी छत्तीसगढ़ के समृद्ध पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है।इस वर्ष '
ट्राइबल फेस्ट' का आयोजन किया जा रहा है जो राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रांतीय संस्कृति का विमोचन कर रहा है। यह निर्विवाद सत्य है कि छत्तीसगढ़ संपूर्ण देश का संगम स्थल है तथा इसकी अदभुत प्राकृतिक छटा अद्वितीय है। डॉक्टर नरेंद्र देव वर्मा ने छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक सौंदर्य को शब्दों में गढ़ा है जिसे राज गीत का दर्जा प्राप्त है-
अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार,
इंद्रावती ह पखारे तोरे पंईया,
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया।
इस प्रकार छत्तीसगढ़ पर्यटन के दृष्टि से समृद्ध है आवश्यकता इस भू-भाग को राष्ट्रीय आलोक में लाने की है।
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