गधे को गंगाजल
वर्षों मालिक को सेवा देने के बाद आखिर मेरा भी सेवानिवृत्ति का समय आ गया,पिछले कुछ दिनों से शारीरिक क्षमता क्षिर्ण हुई है हालात की गंभीरता को समझते हुए मालिक ने सेवा मुक्ति का आदेश जारी कर दिया है।अब तो पैर भी नही चलते हैं बची जिंदगी बैठे ही गुजारनी है सो घर के बाहर पीपल के ओट में बेर के छांव तले मेरे अंतिम आवास हेतु भूमि आबंटित हुआ है,शायद ये वहीं पांच गज जमीन है जिसका सबको इंतजार होता है।वृद्ध हो चला हूँ,चमड़ी कोमल हो गयी है आसानी से बेर के कांटे चुभ जाते हैं,तन में लहू बचा नही सो रिसता नही ,हाँ थोड़ा तकलीफ जरूर होता है पर अपने मालिक के लिए क्या इतना सह नही सकता! आखिर बिना काम लिए दो वक्त का आधा पेट सही खाना तो दे ही देता है,नक्कारा खच्चर इससे बेहतर और क्या उम्मीद पाले वैसे भी हम तो गुलाम हैं।जब लोकतंत्र में लोग भूखे सोते हैं उससे तो बेहतर हैं।जब घनघोर कंटीली छाया में करवट बदलता हूँ तो जरूर बदन पर कांटे चुभते हैं पर वो खुरों पर कील ठोकने से बेहतर है।अब तो बस चंद वक्त ही रह गये हैं न जाने कब बुलावा आ जाये मगर जो वक्त है वो तमाम उम्र की हिसाब करने बैठ गयी है और मेरे स्मृति में यादों की रेल दौड़ रही है।
छः माह का था जब पुष्कर मेले से मालिक ने खरीद लाया था दो चार दिन तो खूब आवभगत हुई,वाह!साहब क्या खाना!क्या पिना! लगा मानो जिंदगी स्वर्ग हो गयी हो पर तीसरे ही दिन से सारा माखौल फुर्र हो गया, बेटा तीन दिन तक जो दबाई थी सब एक ही दिन में सत्यानाश हो गया,ईटों की यों ढेरियां लादी जाती की बस अब तो रोज जिंदगी और मौत होने लगी ,बस क्या था ये दुःख भरे दिन भी जल्दी बीत गयी क्योंकि अब तक तो आदत लग गई थी भला पुरी जिंदगी का सत्य जो सामने दिख रही थी उसे मैंने स्वीकार कर लिया था,गधा था सो गधों की नसीब से बच नहीं सकता था। इस घटना से मैंने एक सीख ली कि
"समय कितना भी कठिन क्यों न हो यदि उसे स्वीकार कर ली जाए तो रास्ता आसान हो जाता है।"
आज तबियत कुछ और खराब हुई है अब तो आंखे खोलना और करवट बदलना भी मुश्किल हो गया है,आज पड़ोस की विलायती कुत्ता भी मिलने आया था काफी हिलाया डुलाया तब पलकों में जान आई।मेरे हालात पर मुझसे ज्यादा वो मातम मना रहा था,कुछ समय बाद उसने मेरे मालिक के बारे में अनाप-सनाप बकना चालू कर दिया मुझसे तो रहा न गया मगर मैं बूढ़ा असहाय भला कर भी क्या सकता था कान हिलाकर असहमति देदी वो दोस्त चला गया।एक पल तो सोंचता हूँ वो क्या गलत कह रहा था मगर ये भी सत्य है कि इतने दिनों तक मालिक ने मेरा पालन-पोषण और रक्षा भी तो किया था,आखिर मैं गुलाम था मालिक पर ऊँगली क्योंकर उठाता।अचानक आखें झेंप गयी चारो ओर अंधेरा छा गया उस घोर अंधेरे में उस विलायती कुत्ते का मेम साहब के गोद में आनंद भोगता दृश्य सामने आ गया मैं उस दृश्य में डूब गया,उस कुत्ते को कभी घर का कोई काम करते न देखा था फिर भी वो कितना शान से रहता है,गाड़ियों में घूमता है,अंग्रेजी बिस्कुट खाता है पर मैं निराश नहीं हुआ क्योंकि ऐसा सुख तो बहुत से आदमियों को भी नसीब नहीं होता है तो गधा तो दूर की बात है इससे एक बात और समझ आई कि
"आज कुत्ता होना आदमी होने से अधिक श्रेयस्कर है।"
आज तो हलक से पानी भी नही उतर रहा है सुबह से आज मक्खी आखों में भिन-भिना रही है,शरीर अब सिर्फ सांसों के सहारे है।मैने आज एक स्नेहिल स्पर्श मेरे पीठ पर महसूस किया है शायद मेरे मालिक हैं ,कुछ अस्पष्ट आवाज़ कानों पर पड़ रही है कोई घंटी सा लग रहा है।आखें खोलने की तमाम प्रयास आज असफल हुए हैं लौ सा घूमता दृश्य कोई दीपक का अंदेशा था,अब कान में तुलसीदल रखकर मुँह में कुछ बूँदें गंगाजल डाली गई है ।इन तमाम दृश्यों से आंखे भर आई मैं कैसे धन्यवाद करू अपने मालिक का।'गधे को गंगाजल के साथ विदा'यह मेरा सौभाग्य है।देखते ही देखते दृश्य ओझल ,आंखे पथरीली और शरीर सर्द हो गयी।मेरा शरीर अनंत ब्रम्ह में लीन हो गया।इससे एक बात और समझ में आयी कि
"मुक्ति के लिए आदमी होना जरूरी नही बल्कि सर्वस्व स्वीकार्यता ही मोक्ष का मार्ग है।"
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