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रज़ा

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  तू रख ले मुझे जैसे तेरी रज़ा हो तेरी हर रज़ा में भी मेरी मजा हो  तुझसे अलग जी न चलता जहां का  हँस के भी सह लेंगे कोई सजा हो।। तुझसे है सूरज ये चांदनी तुझसे तुझसे जहां है ये रागिनी तुझसे तुझसे महकती फिज़ा इस जहां की सारे जहां की तुम्ही एक वजह हो हँस के भी सह लेंगे कोई सजा हो  तू रख ले मुझे जैसे तेरी रज़ा हो।। मेरे मौला मैं तो हूं आशिक तेरा ही गले से लगा ले या दूरी बना ले  मैं होके फ़ना हो जाऊं जहां की रहम के बिना तेरे जीना कज़ा हो हँस के भी सह लेंगे कोई सजा हो तू रख ले मुझे जैसे तेरी रज़ा हो।।                        🎉DC✨️✨️✨️                                    🍓🍍🍍👍👍

सड़कों पर बेमौत मरती गायें समाधान क्या?


गौ ,गंगा, गायत्री ,गीता,
सभी पूज्य हैं परम पुनीता।
भारतवर्ष में गाय न केवल पशु है अपितु यह हमारी समृद्धि एवं समन्वित संस्कृति का अद्वितीय धरोहर है भारत में गाय को गौ माता का दर्जा प्राप्त है, साथ ही गौ सेवा, गौ पूजन एवं गौ आराधना से संबंधित अनेक तीज-त्यौहार भारतीय जनमानस एवं लोक व्यवहार में व्याप्त है।
20 वीं पशु जनगणना के आधार पर भारत में पशुधन की संख्या 300 मिलियन से भी  अधिक है जो विश्व में सर्वाधिक है साथ ही भारत दुग्ध उत्पादन में भी प्रथम स्थान पर है इस प्रकार भारत में गाय एवं गोवंश का महत्वपूर्ण आर्थिक स्थान भी है।

 भारत में गोधन कृषि, परिवहन, दुग्ध  एवं मांस उत्पादन में उपयोगी रहा है गाय एक ऐसा पशु है जिसकी गोबर, मूत्र ,चर्म, अस्थि, मांस सभी उपयोगी है गाय की यह बहुआयामी उपयोगिता प्राचीन काल से चली आ रही है। ॠगवैदिक काल में गायों की महत्ता चरम पर थी तब गायों के लिए युद्ध हुआ करता था जिसे गावेष्टी कहा जाता  था गायों को मुद्रा की तरह उपयोग किया जाता था गोवंश के इस विपुल उपयोगिता के कारण ही इन्हें पशुधन  या गोधन कहा जाता है परंतु आज के औद्योगिक समाज में गायों की महत्ता में ग्रहण लगा है और दशा  उत्तरोत्तर दयनीय हुई है।
हाल के दिनों में आवारा पशुओं की संख्या में वृद्धि हुई है लगातार आर्थिक हो रही मानवीय विचारधारा व्यक्ति को संवेदनहीन बना रही है यही कारण है कि स्वार्थी लोग अपने मवेशियों से दूध निकाल कर पशुओं को आवारा छोड़ रहे हैं तो कुछ लोग गाय की आर्थिक उपयोगिता पर अतार्किक प्रतिबंधों से हतोत्साहित हुए हैं इस प्रकार गाय की उपयोगिता सीमित हो गयी जिससे गाय पालना घाटे का सौदा हो गया है ऐसे में गायों को खुला छोड़ पिंड छुड़ाने का प्रयास हो रहा है जो गायों के असामयिक मृत्यु का कारण बन रहा है।आजकल गाय की मौत की खबर आम होती जा रही है भूख,प्यास,प्रदूषण से सड़कों पर गाय बेमौत मर रही है,राष्ट्रीय राजमार्गों पर भारी वाहन एवं दोपहिया वाहनों के लिए आवारा पशु खतरा पैदा कर रहे हैंं इससे न केवल पशु अपितु जनहानि भी हो रही है आये दिन सड़कों में दुर्घटना के खबर देखने सुनने को मिलता है।इस समस्या के निदान हेतु सरकार के साथ साथ आम नागरिकों को भी सामने आना होगा।
सर्वप्रथम पशुपालकों द्वारा पशुओं की स्वास्थ्य,सुरक्षाऔर निकेत व्यवस्था को सुनिश्चित करना चाहिए इसके बाद ही सरकारी प्रयासों का लाभ प्राप्त हो सकता है।गोधन के सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार द्वारा गांव सुराजी अभियान के तहत ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए समावेशी योजना- नरवा,गरवा,घुरवा,बारी योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है जिसके अंतर्गत गौठान निर्माण,चारा-पानी,चिकित्सा सुविधा एवं पशु अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था की जा रही है जिसकी सड़कों पर पशुओं के आतंक को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका है।इसके साथ ही दुर्घटनाओं में घायल पशुओं को आपात चिकित्सा उपलब्ध कराने हेतु 'संवेदना एक्सप्रेस' नामक एंबुलेंस व्यवस्था संचालित किया जा  रहा है शहरी इलाकों में पशुओं को सड़कों से हटाने के लिए विशेष टीम गठित की जा रही है जिससे पशुओं की सुरक्षा के साथ साथ यातायात सुगम हो सके।इसके साथ ही विभिन्न गैर सरकारी संगठनों द्वारा गौ सेवा संबंधी अनेक कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है ये सभी प्रयास जनभागीदारी से ही अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है अतः सभी लोगों को सामुहिक प्रयास करना होगा।
भारत जहां गाय को माता का दर्जा है वहां गाय की दुर्दशा निश्चय ही शर्मनाक है।यदि अरब देशों में दृष्टिपात करें तो वहां गाय की स्थिति हमशे लाख गुना बेहतर है जबकि वे एक मुस्लिम राष्ट्र है इसके बावजूद वहां गोधन सुरक्षित और समृध्द अवस्था में है तकनीकी नवाचार के प्रयोगों से गौ उत्पाद को अधिक गुणवत्ता पूर्ण बना कर गायों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया गया है।भारत जैसे पशुपालक समाज में आज गौवंश के सुरक्षा हेतु नवाचार का प्रयोग कर पुनः गौ की बहुआयामी उपयोगिता को बहाल करने की आवश्यकता है ताकि गरीबी में ग्रस्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिले साथ ही गुणवत्ता पूर्ण दुग्ध उत्पाद  की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।धर्मांधता से उपर उठकर गाय के वास्तविक महत्व को समझना होगा जिससे पुनः गौवंश को उनका यथोचित स्थान प्राप्त हो सके।

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