भारत विश्व के प्राचीन सभ्यताओं वाला देश है, इन्ही सभ्यताओं में से एक हमारे आदिवासी समाज है।हाल ही में हुए शोध में दक्षिण भारत से कुछ ऐसे मानवीय अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनकी पहचान द्रविड़ प्रजाति के रूप में किया गया है तथा इसकी आयु चालिस हजार वर्ष आंका गया है साथ ही सिन्धु सभ्यता से भी निकट संबंध पाया गया।वैसे भारत में 'आदिवासी 'के स्थान पर 'वनवासी 'शब्द को तरजीह दी गई है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 में भारत के कुल 705जातियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है,जिसमें से 42जनजातियों का निवास स्थल छत्तीसगढ़ में है।'मुरिया' इन्ही में से एक है जिसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध जनजाति माना जाता है।इनके खान-पान,आवास-निवास , भाषा,विवाह,व्यवसाय,मनोरंजन आदि में व्यापक विविधता है।
'घोटुल' मुरिया जनजातियों में समाजीकरण का एक महत्वपूर्ण अभिकरण है।यह एक बहुआयामी व्यवस्था है।इसका मुख्य उद्देश्य जनजातीय संस्कृति से युवाओं को परिचय कराना तथा मानसिक विकास सुनिश्चित करना है।
मानवशास्त्री शरतचंद्र के अनुुुसार घोटुल वह व्यवस्था है जहां आदिवासी युुुवक युवती भोजन
इकट्ठा करना,जादू सीखना,एवं सांस्कृतिक प्रशिक्षण जैसे विद्या ग्रहण करते हैं साथ ही भावी जीवन के लिए योग्य साथी का चुनाव करते हैं।
मुरिया जनजाति विवाह पूर्व के यौन संबंध को पवित्र मानते हैं इसलिए घोटुल को रात्रि मिलन केन्द्र भी कहते हैं,यहाँ युवाओं में सहवास की भावना विकसित की जाती है।इसकी प्रभाव इतनी गहरी है कि आजतक मुरियाओं में एक भी यौन अपराध के मामले दर्ज नही हुए हैं न ही ग्राम स्तर पर ही इसका कोई शिकायत मिली है।
प्रसिद्ध धार्मिक गुरु आचार्य रजनीश(ओशो) ने भी इस संस्था के महत्व को स्वीकार किया है। तथा यौन अपराध रोकने के सर्वोत्तम साधन माना है।
घोटुल को विश्व पटल पर प्रसिद्ध दिलाने का कार्य अंग्रेजी मानवशास्त्री वेरियर एल्विन ने किया है।
उन्होंने वर्ष1941से1947तक बस्तर में मुरिया जनजाति का सहभागी अवलोकन किया और उस पर एक किताब लिखा "मुरिया एण्ड दियर घोटुल" यह किताब विश्व भर के मानवशास्त्रीयों को घोटुल के संबंध में आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
यूं तो युवा गृह हर जनजातीय समाज का महत्वपूर्ण अंग है।इसकी शुरुआत कहाँ से हुई यह अनभिज्ञ है किन्तु 'युवागृह'शब्द जर्मन भाषा के 'जुगलिम्स होम' का हिन्दी रूपान्तरण है।
घोटुल का वास्तविक नाम 'गोटुल' है,जो गोंडी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है,'गोंगा स्थल' या 'विद्या स्थल'।इसका शुरूआत मुरिया जनजाति के आदिपुरूष लिंगो बाबा द्वारा किया गया था अतः घोटुल में लिंगो देव की पूजा की जाती है।घोटुल में केवल अविवाहितों को ही प्रवेश मिलता है।यहां युवकों को चेलिक और उनके नेता को सिरेदार जबकि युवतियों को मोटियारिन और उनके नेत्री को बेलोसा कहते हैं।यहां लड़के-लड़की आपस में जोड़ी बनाते हैं और रात्रि निवास करते हैं।
सुबह युवतियों को आयुर्वेदिक गर्भनिरोधक औषधीय पेय पिलाया जाता है फिर भी यदि किसी को गर्भ ठहर जाये तो उस बच्चे का लालन-पालन पुरा गांव मिलकर करता है।विवाह के लिए तैयार जोड़े का विवाह भी कराया जाता है। इस प्रकार यह जीवन साथी तलाशने का सर्वोत्तम व्यवस्था है। वर्तमान में यौन संक्रमण जैसे समस्याओं के आशंका में घोटुल को कमजोर करने का प्रयास बाहरी सभ्य समाज द्वारा किया जा रहा है जिसका की उन्हें कोई नैतिक अधिकार नहीं है।जबकि ये जनजातियाॅ अपने सारे यौन संबंधी समस्याओं का समाधान वन औषध के माध्यम से करने में निपुण है,साथ ही यह अत्यंत प्राचीन ब्यवस्था है जहां आजतक इस प्रकार की कोई समस्या नही पायी गई है।अतः आज जनजातियों के लिए घोटुल को बचाये रखना किसी चुनौती से कम नहीं है।
मानव वैज्ञानिक फ्यूरेर-हैमनफोर्ड ने घोटुल को आधुनिक क्लब का प्राच्य रूप की संज्ञा दी है।किन्तु यह मात्र मनोरंजन का साधन नही है अपितु इसका समाजशास्त्रीय महत्व भी है। अतः सरकार द्वारा संभावित आशंकाओं का निराकरण कर इस अनमोल धरोहर को संरक्षण प्रदान करने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
Dhivendra
अमूल्य जानकारी महोदय हमारी संकृति की वास्तविक झलक दिखाती वनवासी समुदाय,,,
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