ये कहानी है तीन दोस्तों की जिनकी दोस्ती का परवान जितनी तेजी से चढ़ा था उससे भी तेज गति से उतरने का सिलसिला रहा ऐसा क्यों हुआ आइये जानते हैं।
बात कालेज के दिनों की है।इंजीनियरिंग करने के लिए मैं रायपुर आ गया था एक प्रतिष्ठित कालेज में एडमिशन भी मिल गया।वैसे यहाँ दोस्त तो बहुत बने मगर जैसे होता है न कुछ विशेष लोगों से विशेष अपनापन ये लेख उन्ही खास दोस्तों के लिए है।वैसे तो आदेश,जागृत,राधेश्याम और तरूण मेरे सबसे करीब रहे मगर आज हम बात करेंगे सिर्फ आदेश और जागृत की।
मेरे क्लास का पहला दिन था,मैं तकरीबन एक माह बाद क्लास ज्वाइन किया था।पहले ही रो में आदेश और जागृत बैठे थे वे तब तक पक्के दोस्त बन चुके थे मैं उनसे अनजान था और मुझे एक माह का सिलेबस भी कम्पलीट करना था सो मेरा ध्यान पढ़ाई में लग गया पंद्रह दिन बाद क्लास टेस्ट था मैं उसमें अव्वल आ गया इस पर हमारे फिजिक्स के टिचर ने उत्साह बढाया और उसके बाद आदेश से बातचीत प्रारंभ हुआ हम दोस्त बन गए लेकिन जागृत अभी भी अलग-अलग था खैर कुछ दिनों बाद ही हम तीनों बेस्टफ्रेंड्स हो गये आदेश रोज टिफ़िन लाता था तो साथ में खाते थे कभी कैंटिन तो कभी मेस भी जाते क्लास में खूब मस्ती भी होती थी।
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DIMAT,Raipur
इसी तरह पहला सेमेस्टर पुरा हो गया फिर हमारे सेक्शन्स डिस्ट्रीब्यूट हुआ और सारा बखेडा प्रारंभ हो गया। मैं और आदेश सेक्शन 'ऐ' में आ गए लेकिन जागृत वही बी में छूट गया खूब कोशिशें हुई सेक्शन चेंज कराने की पर नाकामयाब रहे।अब हम लोगों का मिलना-जुलना कम होने लगा हमारे बीच दुरियां बढ़ने लगी फिर भी अच्छे दोस्त तो बने ही रहे।पहले सेमेस्टर का रिजल्ट आ गया था मैं और आदेश पास हो गये थे पर जागृत एक विषय में फेल हो गया था।किसी तरह उसे सम्भाला और फिर चालू हुआ जुल्मों-सितम का दौर मैं उसे भी अच्छे नंबरों से पास होते हुए देखना चाहता था इसके लिए साम दाम दंड भेद की नीति पर कार्य प्रारंभ कर दिया।लेकिन इस नीति में मेरी अपनी बुराईयां भी सामने आने लगी मैं एकान्त रहने लगा कभी-कभी तो कई दिनों तक दोस्तों से बात भी नही कर पाता था जिससे उनमें गलतफहमियां घर करने लगी।अंततः एक दिन जागृत ने मेरा साथ छोड़कर अपना अलग रास्ता चुन लिया वो न तो अब मुझसे बात करना चाहता था और न ही कोई संबंध रखना और इस तरह हमारी दोस्ती का अंत हो गया मगर मैं रूका नही लगातार उसे मनाने का प्रयास किया हर मर्ज आजमा कर देख लिया पर वो नही माना।
अब मैं भी यह सोंचने को मजबूर हो गया कि निश्चित ही मैंने कोई बड़ी गलती कर दी है पर क्या? ये मुझे आजतक पता नही चला और न ही उसने मुझे बताया।मैं आज भी उसे याद करता हूँ तो आंखे बीते दिनों की याद में स्वस्फूर्त बहने लगती है मगर होंठों में हल्की मुस्कान भी बिखर जाती है।अब जागृत मेरे लिए स्मरण का विषय बन चुका है फिर भी मैं उसके वापस दोस्ती की मिशाल बनते देखने की उम्मीद अपने दिल में रखता हूँ।एक सच्चे दोस्त से दूर होना मेरे लिए किसी वज्रपात से कम नही इस घटना को हुए चार साल बीत गये मगर जख्म आज भी हरा है।मेरे दिल में एक स्थान खाली पड़ा जिसकी भरने की उम्मीद कम है मगर है। आदेश आज भी साथ है पर पहले से अधिक धीर गंभीर अब हम सब अपने-अपने भविष्य निर्माण में यदा-कदा संलग्न हैं ,पर दोस्त तो दोस्त होता है यह ऐसी अर्जित संपत्ति है जिसका मूल्य चुकाया नही जा सकता है।
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Dhivendra:
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