विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक भारत सदैव ही अपनी शिक्षा पद्धति और ज्ञान की गुणवत्ता के लिए विश्व में आकर्षण का केंद्र रहा है।इस व्यवस्था में गुरूकुल परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान रहा है,यह सार्वधिक प्राचीन शिक्षा प्रणाली में से एक है,जहां गुरु-शिष्य के मध्य बनने वाले आत्मीय संबंध को ही शिक्षा का प्रथम चरण माना जाता था।यह एक प्रकार का आवासीय शिक्षण व्यवस्था थी जहां छात्र आठो पहर गुरु के छत्रछाया में रहता था।समय के साथ सभ्यता बदलती गयी तो व्यवस्थाएं भी बदली।इसी देश ने तक्षशिला ,नालंदा विश्वविद्यालय का परचम विश्व में लहराया था तो आज शीर्ष 200 में भी हमारे एक भी विश्वविद्यालय (वर्तमान में तीन शामिल) नही है।अंधानुकरण,पाश्चात्य शिक्षा की फूहड़ नकल और व्यापार बनती शिक्षा व्यवस्था में सब कुछ है सिवाय बेहतर शिक्षा के।
इस औद्योगिक होती शिक्षण संस्थानों के बीच में आज भी एक शिक्षक ऐसा है जो जुगनु होकर भी भारतीय समाज एवं परंपराओं का संवर्धन करते हुए शिक्षा के उस प्रचीन गुरूकुल परंपरा को नये कलेवर में प्रस्तुत करते हुए छात्रों को उनके राह दिखाने में तल्लीन हैं।
गुरुकुल(आई.सी.एस.) मध्यभारत की सबसे विश्वसनीय संस्थानों में से एक पिछले अट्ठारह वर्षों से लगातार सिविल सेवा की तैयारी करने वाले प्रतियोगियों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है।हजारों की संख्या में लोगों ने यहाँ आकर अपने सपनों को साकार किया है।यहां मात्र शैक्षणिक योग्यता पर ही बल नही दिया जाता अपितु सामाजिक,मानसिक,मनोवैज्ञानिक तथा विभिन्न ललितकलाओं के प्रति रूचि पर भी आश्यक दिशा निर्देशन किया जाता है।गुरुकुल के भांति प्रत्येक छात्र पर ध्यान दिया जाता है छात्रों में शिक्षा के साथ देशभक्ति,संविधान प्रेम,राष्ट्रीय एकता अखंडता, प्रेम ,सहयोग,समर्पण,दया-धर्म आदि भावनाओ का विकास किया जाता है तो वहीं जातिवाद,अलगाववाद,क्षेत्रवाद जैसे प्रेतों का शमन भी करता है।ब्यक्ति के ब्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास के लिए प्रतिबद्ध ऐसा संस्थान दुर्लभ है।आई आई टी में जो स्थान सुपर 30 का है वहीं स्थान सिविल सेवा के तैयारी के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में स्थित गुरूकुल आई सी एस का है।
15अगस्त हो ,26जनवरी या गुरुपूर्णिमा अथवा बसंत पंचमी हर राष्ट्रीय महत्व के तिथियों पर यथोचित ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है,साथ ही विभिन्न क्षेत्रों के बौद्धिक वर्गों के सम्मेलनों में विद्यार्थीयों को भी आमंत्रित किया जाता है जहां विविध विषयों के संबंध में अनेक जानकारियां प्राप्त की जा सकती है।विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत पुराने छात्रों का भी बराबर मार्गदर्शन उपलब्ध कराया जाता है।
इस तीव्र परिवर्तनशील समाज में आज भी गुरूकुल अपनी परंपराओं के साथ जीवित है तथा प्रत्येक वर्ष सैकड़ों विद्यार्थीयों के जीवन में सफलता का ज्योत जला रहा है।इसका श्रेय इस संस्थान के संचालक,संरक्षक मा.श्री ब्रजेन्द्र शुक्ला जी के कर्मठता,राष्ट्रप्रेम और प्रगतिशील विचार को जाता है।आपने सदैव इस संस्थान को और यहाँ के प्रत्येक छात्र को अपने पुत्र की तरह ही प्रेम किया है।आपके इस अविरल नि:स्वार्थ सेवा भाव को प्रणाम।आप चिर काल तक राष्ट्र को संस्कारवान युवा प्रदान करते रहें।
अपनी छोटी समझ बुद्धि के साथ लिखने का प्रयास।
Dhivendra
अति सुंदर लेख 👌👌👌🙏धन्यवाद
ReplyDeleteगुरुकुल एक ऐसा संस्थान जो राष्ट्र निर्माण में अग्रणी है । यहां सिर्फ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी नहीं वरन सम्पूर्ण जीवनकाल का पाठ पढ़ाया जाता है । संस्थान के आदरणीय गुरु शुक्ला सर सूर्य के समान है जो हजारों लोगों के जीवन से अंधेरा दूर कर रहे हैं।
ReplyDeleteउत्कृष्ठ विवेचना गुरुकुल का..................
ReplyDeleteजितने भी विवेचना करे उतना कम है,गुरुकुलनके लिए........😊😊😊👌👌💐💐
अति सुंदर लेख 👌👌👌🙏धन्यवाद
ReplyDeleteSwachata par Nibandh
श्रेष्ठ लेखन धिवेन्द्र ,गुरुकुल की पूंजी और राष्ट्र की धरोहर हो तुम लोग .सफल और सार्थक जीवन हो यही प्रार्थना ईश्वर से करता हूँ .
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