धड़ल्ले से आधुनिक हो रहा हमारा समाज जहां एक ओर चकाचौंध है तो वहीं दूसरी ओर जातिवाद, क्षेत्रवाद ,अतिवाद जैसे प्रेतों का कहर।
अक्सर हम "आनर किलिंग" की खबर सुनते आ रहे हैं।यह कहानी भी उसी प्रेत से सताये जोड़े की है।
बात उन दिनों कि है जब फिजाओं में प्यार का रंग चढ़ता है।वादियों में बसा एक छोटा सा कस्बा,कहने को यहाँ लोग आधुनिक है पर अपनी रूढ़ी परंपरा से आज भी ग्रस्त हैं जो कभी-कभी अपनी पैशाची स्वरूप दिखाती रहती है।मनीष अभी कालेज जाना शुरू ही किया था कि जैमिनि से दोस्ती हो गई और देखते ही देखते दोस्ती प्यार में बदल गई,पर समाज को ये प्यार-मोहब्बत की बातें समझ कहाँ आती वो तो उस झूठी मान-सम्मान के पीछे पड़े रहते हैं जो उन्हें कभी मिलता ही नही पर उसके लिए अपनो की खुशियों का बलि चढ़ाना स्वीकार होता है। मनीष और जैमिनी के प्यार को ग्रहण लग चूका था,तभी एक निर्णय ऐसा हुआ कि दोनो साथ न जी पाने के गम में साथ मरने का निर्णय लिया।खूबसूरत वादी में सन्नाटा छाया हुआ था तभी ऊंची पहाड़ियों से जोर की चीख ने पूरा वातावरण को कंपित कर दिया।मनीष और जैमिनी ने साथ मरने के लिये कदम उठा लिया था पर शायद वक्त को कुछ और मजूर था जैमिनी तो इस हादसे में चल बसी पर मनीष बच गया था उन्हें हास्पीटल में भर्ती कराया गया और कुछ दिनों में वह ठीक हो गया पर जैमिनी के जाने का गम उसे सताये जा रहा था उसने ईश्वर की इच्छा का सम्मान किया और आगे की जिन्दगी जैमिनी के यादों में जीने का फैसला किया अब वो हर वक्त उसे याद करता,आंखो में सिर्फ जैमिनी का सप्तवर्णी घटा छाया रहता था।एक दिन घूमते हुए मनीष उसी चोटी पर पहुंच गया जहां से दोनो ने छलांग लगाया था और फूट-फूट कर रोने लगा बदहवासी के हालत में मानो आकाश में बीजली सी कौंध पड़ी और एक चेहरा सा उभार आसमान पर बिखर गया वो कोई और नही जैमिनी ही थी।फिर मनीष के जिस्म और जैमिनी के रूह का आपस में वार्ता प्रारंभ हुआ-
जैमिनी- मनीष तुम रोते क्यों हो?
मनीष- ये तुम पुछती हो?
जैमिनी-हाँ मनीष मैं तुमसे प्यार जो करती हूँ।
मनीष-झूठ! तुम मुझे प्यार नही करती यदि करती तो मुझे यूं अकेला न छोड़ जाती।
जैमिनी-मैं तुम्हें दर्द में नहीं देखना चाहती थी इसलिए छलांग लगाते वक्त मैने तुम्हारा सिर अपने सुरक्षित बाहों में कैद कर लिया था।
मनीष- पर मैं जिन्दा रह कर भी जिन्दा नही हूँ।
जैमिनी- मैं भी तो मर कर भी मरी नही हूँ।
मनीष- शायद हमारा नसीब यही है।
जैमिनी- तुम खुश तो रहोगे न?
मनीष- तुम्हारे बिना? नही ये तो बिना सांसों की जिन्दगी है जैमिनी।
जैमिनी- अब तुम मुझे भूल जाओ मनीष।
मनीष- इतना अधिकार तो मत छीनो।मेरे ज़िन्दगी का आधार तो अब बस यादें हैं ।
जैमिनी -तुम्हे अब नई शुरूआत करनी होगी।
मनीष-शुरूआत!वो तो कर चुका हूँ तुम्हारे बिना जीने की शुरूआत, सिर्फ यादों के सहारे जीने की शुरूआत।
जैमिनी-तुम्हारे इस हालात का कारण मैं हूँ न?
मनीष- तुम ये बात भगवान से क्यों नहीं पुछती हो।
जैमिनी-भगवान!वो तो नजर भी नही मिला पाते
अपने अन्याय पर तो वो भी शर्मींदा हैं।
मनीष- जैमिनी! क्या हम ऐसे ही हमेंशा नही मिल सकते।
जैमिनी-नही।क्योंकि यह तभी संभव है जब तुम दिल से चाहोगे।
मनीष - क्या तुम्हें मुझपर भरोसा नही।
जैमिनी-यदि ऐसा होता तो क्या यह हालात पैदा होता।
मनीष- बस तुम यही मिलना।
आंखो में आंसू लिए जैमिनी और मनीष विदा हो गये की तभी किसी ने मनीष के शरीर पर पानी डाल दिया और मनीष को होश में आया। वो एकबार फिर उन्ही फ़िजाओं में जैमिनी को तलाश रहा है।पेड़,फूल,पान,पंछी,जीव सबसे दोस्ती करके जैमिनी का पता पूछता है।दीवाना है पागल नही।प्यार कम नही हुआ बल्कि बढ़ता ही गया आज मनीष के जिन्दगी में ईश्वर की तरह विद्यमान जैमिनी ही उसके ऊर्जा और उन्नति का स्त्रोत है।समाज आज भी कई मनीष-जैमिनी की जिन्दगी में बाधक बनकर खड़ा है।पर वक्त का यह काला कारनामा एक दिन जरूर छट जायेगा। और प्यार को सम्मान मिलेगा। प्रेम निष्काम हो तो यह सफलता जल्दी भी मिल सकता है।
फिर मिलेंगे ऐसे ही किसी रोचक मुद्दों के साथ।
Bahut khub mere dost 👍👍
ReplyDelete