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Showing posts from June, 2020

INDIA

रज़ा

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  तू रख ले मुझे जैसे तेरी रज़ा हो तेरी हर रज़ा में भी मेरी मजा हो  तुझसे अलग जी न चलता जहां का  हँस के भी सह लेंगे कोई सजा हो।। तुझसे है सूरज ये चांदनी तुझसे तुझसे जहां है ये रागिनी तुझसे तुझसे महकती फिज़ा इस जहां की सारे जहां की तुम्ही एक वजह हो हँस के भी सह लेंगे कोई सजा हो  तू रख ले मुझे जैसे तेरी रज़ा हो।। मेरे मौला मैं तो हूं आशिक तेरा ही गले से लगा ले या दूरी बना ले  मैं होके फ़ना हो जाऊं जहां की रहम के बिना तेरे जीना कज़ा हो हँस के भी सह लेंगे कोई सजा हो तू रख ले मुझे जैसे तेरी रज़ा हो।।                        🎉DC✨️✨️✨️                                    🍓🍍🍍👍👍

*चीन पर शिखर वार्ता*

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India vs China आज फिर सुबह-सुबह बलवान चचा दातुन चबाते खिसिया रहे थे, जड़ों तक हिल चुके दांतो के ढुलमुल पोलों से रिसते मचलते लार को अपनी एक बांह से लपेटते हुए ,दूसरे हाथ से अपनी बची खुची लूंगी संभालते हुए, अंगुली में लोटा चीपे बैलेंस बनाते हुए क्रांतिकारी मुद्रा में खड़े होकर मुंशीपार्टी के बिना टोंटी वाली नल से निर्बाध झरती मटमैले जल के करतल ध्वनि से राग मिलाकर ज्यों भड़के कि क्या बताऊं! क्षणभर में मोहल्ले के सारे निखट्टू निपट आवारापन के क्रम तोड़ते हुए  भावी घटित दृश्य की साक्षी बनने हेतु इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गए । चाचा ने चाइनीस तवे से गर्मी भांपकर अपनी आवाज बुलंद करने के लिए जर्जर हो चुके कृशकाया से एड़ी चोटी की बल लगा दी। नल से लगी सरकारी सुलभ शौचालय की उखड़ती प्लास्टर पर लाल दंतमंजन की पिक उड़ेल दिया और लो पल भर में चीन का नक्शा तैयार।अब चचा दातुन को फौजी डंडा बनाकर फौज के मूछों वाले कर्नल के भांति सीमा विवाद पर विश्लेषण के मुद्रा में आ चुके थे कि तभी भगवंती की चीख निकल पड़ी यह क्या! चाचा ने अपनी पड़ोसन भगवंती के आदमी नौलक्खा के मच्छरदानी सरीखे बनियान जो दो-तीन दिन पहले चो...

प्रकृति

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nature झूमती हुई तितलियाँ, गाते हुए भौंरे और पत्ते डाल-डाल है ये प्रकृति का काया कल्प, कल्पना विशाल है, झील, झरना,सागर बहती , पर्वत घाटी भूगोल की, रात-दिन और चांद-सितारा यह खेल है खगोल की, शांतक्लांत सुंदर वरण,पक्षियों की बोल है,  आदि अंत जीव की , प्रकृति की मोल है ,  यहां जीव-जीव जुड़ रहे ,जीवन की जाल है,  यह प्रकृति का कायाकल्प कल्पना विशाल है। nature सोना ,चांदी ,हीरे ,मोती गर्भ में खदान है , मिल गई अनमोल ये इंसान को वरदान है, रंग-रूप , रोग , दुःख का प्रकृति निदान है, परिपूर्ण है प्रकृति यह विधि का विधान है , कलकल बहती जल, यह प्रकृति की ताल है, यह प्रकृति का कायाकल्प कल्पना विशाल है। आसमान में पंछियाँ,जंगल में जीव विहार है, फूलों की हर कलियों में ,आई नित बहार है , आसमान को पर्वत छूती,खुशियों का त्यौहार है, जीवन के हर रंग-रूप में , प्रकृति ही सार है , नित्य-निरंतर चंचलता,यह प्रकृति की हाल है, यह प्रकृति का कायाकल्प कल्पना विशाल है। Add caption नित्य दोहन कर रहा, इंसान का एक वर्ग है, घट रही उपस्थिति, यह प्रकृ...

मानवीय संवेदना का छिछलापन

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"वन नष्ट होते हैं तो जल नष्ट होती है, पशु नष्ट होते हैं तो उर्वरता विदा लेती है और तब यह पुराने प्रेत एक के पीछे एक प्रकट होने लगता है- बाढ़, सूखा ,आग ,अकाल और महामारी।"  उक्त वचन स्कॉटलैंड के वैज्ञानिक रॉबर्ट चेंबर्स की है। आज धरती की हालत का यथार्थ बोध दशकों पुरानी कथन से हो रही है ऐसे में इस कथन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह  थोथी शब्दजाल नही है अपितु चेम्बर्स की प्रकृति के प्रति अनन्य प्रेम और उससे उपजे प्रगाढ़ संबंधों की अभिव्यक्ति भी है तभी उन्होंने धरती की वेदना को पहचानने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी है ।  आज का मानव औद्योगिक समाज का आर्थिक मानव है वह लाभ हानि के भयंकर ऊहापोह से ग्रस्त है संबंधों में भी लाभ हानि का प्रतिशत देखता है ऐसे में मानवीय संवेदना का क्या काम है मगर हमारे चारों ओर कई ऐसी घटनाएं कभी-कभी घट जाती हैं और मानव संवेदना का ज्वार फूट पड़ता है क्योंकि हैं तो हम इंसान ही! लगता है संवेदना से भरा इंसान अब रुकेगा नहीं वह दुनिया उलट-पुलट कर देगा परंतु संवेदना का ज्वार शांत होते ही वह स्वयं उलट-पुलट जाता है। संवेदना के आवेश में ना जाने क्या क...